एक छोटा सा सपना था मेरा ,जवानी में जो देखा था
नादान थी मैं देखो कैसी , सपना पूरा करुँगी यह सोचा था
सपने तो सपने होते हैं , इनका कोई वजूद नहीं
केहतिं थी सारी सखियाँ मेरी , पर इनकी तरह मैं मजबूर नहीं
फिर सच्चाई से हुआ सामना, खुद का वजूद मिटते देखा
अपनों ने ही खिंचा पीछे ,अरमानों को भी लूटते देखा
बेटों के सपनों से जुड़ते माता पिता की उम्मीदें है
बेटी सपने देखे भी कैसे ,कहाँ उसके नसीब में नींदें हैं
इक रोज़ जब माँ से मैंने अपने दिल की इच्छा ज़ाहिर की
नज़र अंदाज़ किया जीवन भर बाबुल ने
अब माँ भी एक पल में पराई हुई
सपनों की मेरी पोटली अब इच्छाओं से भी भरने लगी
नींद से बैर किया ही था अब मन को भी समझाने लगी
किसी और की अमानत समझकर अपने ही घर में रखी गयी हूँ
पिया का घर तो अपना होगा मगर यहाँ भी बस फेंकी गयी हूँ
मुझसे सारे कहते अपनी , मेरी कोई सुनता ही नहीं
सबको मेरी ज़रुरत है पर , इज़्ज़त कोई करता ही नहीं
काश मेरे बाबुल ने मुझको अपने सरआँखों पे रखा होता
तो आज मेरा वजूद इन सबमे सबसे ऊँचा होता
SASSY NANCEE
No comments:
Post a Comment