परदे के पीछे आलम कुछ यूँ रंगीन हो रहा था
शमा वहाँ बुझ रही थी परवाना यहाँ जल रहा था
चादर की सिलवटों में किसी और का चेहरा बना था
जब उनसे हमने पुछा तो उनकी आँखों में भी वही दिखा था
कदम हमारे लड़खड़ाये , उसने हाथ हमारा थाम लिया
हमने हाथ छुड़ाया अपना , तो उसने दिल को थाम लिया
फिर लग कर मेरे सीने से वो रोइ गिड़गिड़ाई
जाते जाते भी इस नादान को हमने दिल से माफ़ किया
SASSY NANCEE
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