Wednesday, 13 July 2016

पत्थर की कहानी

लोग तो बस यूँही कह देते हैं 
के तुम्हारा दिल तो पत्थर का है 
तानों में जीना आसां नहीं 
पत्थर होना भी कोई गुनाह नही
 
हथोड़े की मार ने किया अपनों से अलग 
जा गिरा कहीं दूर , रोया बिलग बिलग 
बारिश ने भी बहाया यूँ 
कभी डूबा कभी उभरा न जाने क्यों 
 
समंदर किनारे फिर रेत के सहारे 
लहरों मे जीना सिखाया खुदको 
बेहोशी के आलम से जगाया ऐसे 
नन्हे हाथों ने जब उठाया मुझको 
 
पत्थरों के बिच , मैं शायद पत्थर निराला था 
खुदा ने भी इसीलिए उस फरिश्ते को निचे उतारा  था 
 
 


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