लोग तो बस यूँही कह देते हैं
के तुम्हारा दिल तो पत्थर का है
तानों में जीना आसां नहीं
पत्थर होना भी कोई गुनाह नही
हथोड़े की मार ने किया अपनों से अलग
जा गिरा कहीं दूर , रोया बिलग बिलग
बारिश ने भी बहाया यूँ
कभी डूबा कभी उभरा न जाने क्यों
समंदर किनारे फिर रेत के सहारे
लहरों मे जीना सिखाया खुदको
बेहोशी के आलम से जगाया ऐसे
नन्हे हाथों ने जब उठाया मुझको
पत्थरों के बिच , मैं शायद पत्थर निराला था
खुदा ने भी इसीलिए उस फरिश्ते को निचे उतारा था
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